में प्रकाशित किया गया था नाटक / एकांकी / पथनाट्य

अद्वितीय और अतुलनीय धर्मात्मा राजा शिबि

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अद्वितीय, अतुलनीय, धर्मात्मा राजा शिबि

(स्वर्ग लोक में इन्द्र की सभा का दृश्य, राजा शिबि की कीर्ति की चर्चा)

पवन देव : इन्द्रदेव, पृथ्वी लोक में उशीनर राज्य में एक बहुत बड़े धर्मात्मा राजा हैं।

वरुण देव : उनके यहां से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटता। उनका सम्पूर्ण जीवन, उनकी शक्ति और सम्पत्ति सबकुछ प्रजा के हित के लिए समर्पित हैं।

अग्नि देव : पृथ्वी पर राजा शिबि के परोपकार की कीर्ति फ़ैल गई है। सब कहा रहे हैं कि दुखी, असहाय और वंचितों की रक्षा के लिए वे सदैव तत्पर रहते हैं। उनकी प्रजा सुखी और संतुष्ट हैं।

पवन देव  : राजा शिबि सदैव भगवद अराधना में लीन रहते हैं।

इन्द्र देव : आप सभी राजा शिबि का इतना बखान कर रहे हो तो उनके अवश्य दर्शन करने चाहिए। (थोड़ा रूककर, सोचते हुए) मुझे लगता है कि चलकर उनकी परीक्षा भी लेते हैं।

अग्नि देव : जैसी आपकी इच्छा।

इन्द्र देव : मैं बाज बनता हूं और तुम कबूतर बन जाओ।

अग्नि देव : जैसी आज्ञा।

(राजा शिबि अपनी राजसभा में बैठे हैं। तभी अग्निदेव (कबूतर) और उसके पीछे-पीछे इन्द्र देव (बाज) का प्रवेश)

कबूतर : मेरी रक्षा करो राजन, मेरी रक्षा करो-3

(कबूतर बाज से डरकर राजा की गोद में बैठ जाता है। राजा प्रेम से उसपर हाथ फेरते हैं। कबूतर से थोड़े पीछे ही एक बाज उड़ता हुआ आता है और वह राजा के सामने बैठ जाता है।)

बाज : राजन, मैं बहुत दिनों से भूखा हूं। आप मेरा भोजन मुझसे मत छिनिए। मुझे यदि यह कबूतर नहीं मिला तो मेरे प्राण निकल जाएंगे। मैं जीवित नहीं बचूंगा।

राजा शिबि : हे बाज! यह कबूतर अपनी रक्षा की प्रार्थना लेकर मेरे पास आया है। इसकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य है।

बाज : मुझे यह कबूतर नहीं मिला तो मैं नहीं बचूंगा। क्या आप मेरी रक्षा नहीं करेंगे? मैं भी तो आप ही की प्रजा हूं।

राजा शिबि : अवश्य! मैं तुम्हारी भी रक्षा करूंगा। तुम्हारे लिए यह कबूतर क्यों मारा जाए, इसकी क्या आवश्यकता है। तुम्हें मांस चाहिए न, तो तुम्हें मांस अवश्य मिलेगा पर किसी की हत्या करके नहीं।

बाज : महाराज! कबूतर मरे या दूसरा कोई प्राणी, मांस तो किसी न किसी को मारने के बाद ही मिलेगा।

राजा शिबि : (विचार करते हुए) मैं दूसरे किसी प्राणी को नहीं मारूंगा। तुम्हारी भूख दूर करने के लिए मैं किसी अन्य पशु या पक्षी को दुःख नहीं दूंगा। तुम्हें मांस चाहिए न, तो मैं अपने शरीर का मांस दूंगा। तुम्हें कितना मांस चाहिए?

बाज : राजन! इस कबूतर का जितना वजन है उतना ही मुझे मांस चाहिए।

राजा शिबि : अवश्य। (इतना कहकर राजा एक बड़े तराजू एक पलड़े में कबूतर को बैठाते हैं और दूसरे पलड़े में धारदार हथियार से अपने शरीर के एक-एक अंग के मांस को काट-काटकर रखते गए। कबूतर का वजन बहुत ज्यादा होता है। राजा के शरीर से रक्त की धार बहने लगती है और बहुत सा मांस रखने के बाद भी कबूतर के वजन के बराबर नहीं हो पाता। अंत में राजा स्वयं तराजू में खुद चढ़ जाते हैं।)    

राजा शिबि : तुम मेरी इस देह को खाकर अपनी भूख मिटा लो।

(महाराज जिस पलड़े पर थे, वह पलड़ा इस बार भारी होकर भूमि पर टिक गया और कबूतर का पलड़ा ऊपर उठ गया था। लेकिन उसी समय बाज साक्षात देवराज इन्द्र के रूप में प्रकट हो जाते हैं और कबूतर अग्नि देव के अपने मूल रूप में खड़े हो जाते हैं। राजा शिबि पर पुष्प की वर्षा होती है।)

अग्नि देव : महाराज! सचमुच बड़े धर्मात्मा हैं। आपकी तुलना हम क्या, विश्व में कोई भी नहीं कर सकता।

(इन्द्र देव के आशीर्वाद से राजा शिबि का शरीर पहले के समान ठीक हो जाता है।)

इन्द्र देव : आपके धर्म की परीक्षा लेने के लिए मैं बाज और अग्नि देव कबूतर का रूप धारण किया था। आप हमारी परीक्षा में सफल हुए। आपका यश सदा अमर रहेगा।

(राजा हाथ जोड़कर दोनों देवताओं को प्रणाम करते हैं। दोनों देवता महाराज को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं।)

– लखेश्वर चंद्रवंशी ‘लखेश’

लेखक:

डॉ. लखेश्वर चन्द्रवंशी 'लखेश' कार्यकारी सम्पादक : केन्द्र भारती, विवेकानन्द केन्द्र हिन्दी प्रकाशन विभाग, जोधपुर (राजस्थान) पूर्व सम्पादक : newsbharati.com, पूर्व सम्पादक : भारत वाणी (साप्ताहिक) कार्यकर्ता : विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी

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