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मोदी द्वेष के कारण कांग्रेस पतन की ओर

 

Narendra Modi-soniya-rahul-gandhiसच है कि स्वार्थ की राजनीति, ईर्ष्या और द्वेष मनुष्य को अंधा बना देती है। स्वार्थ का मद उसपर इतना हावी हो जाता है कि उसके सोचने और समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है। देश की वर्तमान राजनीति में आज ऐसा ही वातावरण बन चुका है जहां भारत सरकार के विरुद्ध तमाम विपक्षी दलों में भारी बौखलाहट दिखाई दे रही है। ये बौखलाहट इसलिए नहीं है कि भारत सरकार देश पर निरंकुश शासन कर रही है या जनता पर अत्याचार कर रही है, बल्कि इसलिए है कि देश पर मोदी सरकार शासन कर रही है। मोदी द्वेष के चलते कांग्रेस और उसके समर्थक दल अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों को भूलाकर देशविरोधी नारे लगानेवालों के समर्थन में खड़े हो गए। आपातकाल के बाद भारतीय राजनीति में यह एक और काला धब्बा साबित हो रहा है।

जेएनयू की घटना और राहुल गांधी

सब जानते हैं कि 9 फरवरी, 2016 की रात जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में वामपंथी तथा कथित सेक्यूलरिज्म के नशे में चूर सैंकड़ों छात्र-छात्राएं आतंकवादी अफजल गुरु को शहीद के रूप में प्रतिष्ठित कर रहे थे। ये वामपंथी और अलगाववादी छात्र भारत विरोधी नारे लगाकर देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अपमान कर रहे थे। जेएनयू के अन्दर कश्मीर की आज़ादी और भारत की बर्बादी की कसमें खाई जा रही थीं, पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाए जा रहे थे। देशद्रोही विद्यार्थियों के गो बैक इंडिया, कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी, भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जैसे नारों ने पूरे कैंपस में बवाल खड़ा कर दिया था। केन्द्र की मोदी सरकार ने इस घटना पर एक्शन लेना शुरू ही किया था कि अगले ही दिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जेएनयू पहुंच गए और देशद्रोही नारे लगानेवालों के समर्थन में खड़े हो गए। राहुल ने जेएनयू में कहा, “सबसे ज्यादा राष्ट्रविरोधी लोग वो हैं जो इस संस्थान में छात्रों की आवाज दबा रहे हैं।” राहुल गांधी के इस तुच्छ राजनीति के कारण भारतीय जनता के हृदय में कांग्रेसी खेमें के प्रति बेहद आक्रोश है जो आगामी चुनाव में कांग्रेस मुक्त भारत की ओर ले जाने का कारण बन सकता है। 24 फरवरी को कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में यह भी कह दिया कि,“देशविरोधी नारा लगाना देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता।” ऐसा लग रहा है कि मोदी विरोध में कांग्रेस की विवेक की आंख बंद हो गई है इसलिए तो उसे “देशद्रोह” और “देशहित” के बीच के अंतर को समझ नहीं पा रहे हैं।

मोदी द्वेष का कारण

कांग्रेस पार्टी ने 60 वर्षों तक देश पर शासन किया। नेहरू-गांधी परिवार से पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनें, जबकि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी देश का शासन चला रही थीं। इस समय कांग्रेस की ओर से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का प्रमोशन शुरू है। कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी, हालांकि यह मंशा उन्होंने जगजाहिर नहीं की थी। परन्तु देश की जनता ने प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी को चुनकर कांग्रेस और राहुल के सपनों को चुराचूर कर दिया। नरेन्द्र मोदी की यह सफलता कांग्रेस उपाध्यक्ष की विफलता साबित हुई क्योंकि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा था जबकि भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा था।

नेहरू-गांधी परिवार को देश की सत्ता परंपरागत रूप से हासिल होती रही। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि कांग्रेस पार्टी पर नेहरू-गांधी परिवार का एकाधिकार चलता है। राहुल गांधी के वक्तव्य और नासमझी देखते हुए तो यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस में विद्वता और योग्यता का कोई मूल्य नहीं। कांग्रेस में सर्वोत्तम पद वही पहुंच सकता है जिसके नाम के पीछे गांधी लिखा होगा, भले ही उसमें सहस्त्रों दोष क्यों न हो! चाहे वह देशद्रोही नारे लगानेवालों के समर्थन में खड़ा हो, फिर भी उसकी मान्यता रहेगी क्योंकि वह नेहरू-गांधी परिवार का सदस्य है। जबकि नरेन्द्र मोदी के परिवार का राजनीतिक दलों से कभी नाता नहीं रहा। संन्यास की इच्छा लेकर नरेंद्र मोदी घर से निकले। रामकृष्ण मठ में दीक्षा लेकर देशाटन कर नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक बनें। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में लगभग 3 दशक कार्य करने के बाद वे प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचे हैं। पहले गुजरात की जनता ने 2001 से 2014 की अवधि में नरेन्द्र मोदी को चार बार मुख्यमंत्री के रूप में चुना। लगभग 14 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में बेहतरीन कार्य किया। उत्तम प्रशासन और विकासवादी नीतियों के चलते उनकी लोकप्रियता गुजरात से निकलकर देश-विदेश में पहुंची। इसके बाद देश ने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में चुना। जनता के समर्थन से बनी मोदी सरकार से द्वेष करने का कांग्रेसी खेमें का कोई करना नहीं है। बतौर भारत के प्रधानमंत्री वे देश की कीर्ति को दुनियाभर में पहुंचा रहे हैं। आज दुनिया के तमाम बड़े नेता, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, रूस के राष्ट्रपति वाल्दिमीर पुतिन, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबोट, ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन जैसे दिग्गज नेता प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान करते हैं, और इन दिग्गजों के आपसी भेंट-वार्ता के दौरान यह स्पष्ट दिखाई देता है।

ये द्वेष पुराना है       

एक ओर दुनिया के तमाम बड़े नेता प्रधानमंत्री मोदी के कार्यों की सराहना करते हैं, उनसे अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं, तो दूसरी ओर कांग्रेस और उसके खेमे के राजनीतिक दल अकारण प्रधानमंत्री मोदी को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ते। कांग्रेस का यह मोदी विरोध नया नहीं है। सोनिया गांधी ने 10 वर्ष पूर्व मोदी को मौत का सौदागर कहा था। कांग्रेसी खेमा प्रधानमंत्री मोदी को हिटलर तक कहते हैं। गत वर्ष कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान के ‘दुनिया टीवी’ को एक इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में कांग्रेस नेता ने कहा था कि अगर पाकिस्तान को भारत से बाइलेट्रल टॉक करनी है तो उसे पहले नरेंद्र मोदी सरकार को हटाना होगा और हमें (कांग्रेस को) लाना होगा। मणिशंकर अय्यर ने यहां तक कहा, ‘‘हमें (कांग्रेस को) सत्ता में वापस लाइए और उन्हें हटाइए। (संबंध बेहतर बनाने के लिए) और कोई रास्ता नहीं है। हम उन्हें हटा देंगे लेकिन तबतक आपको (पाकिस्तान को) इंतजार करना होगा।’’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के मन में नरेन्द्र मोदी के प्रति जब ऐसा द्वेष भरा है तो उनके नए नासमझ नेता राहुल गांधी के मन में कितनी ईर्ष्या होगी, यह हर कोई समझ सकता है। केवल 44 सीटों में सिमटी कांग्रेस सत्ता सुख के लिए तड़प रही है जिसका नेतृत्व सोनिया गांधी और राहुल गांधी कर रहे हैं। इस समय सत्ता हासिल करना संभव नहीं है। अपनी खोई हुई जमीन को पुनः प्राप्त करने के लिए कांग्रेस को समाज में पैठ बनाना जरुरी है। विडम्बना देखिए भाजपा को जनता ने पूर्ण बहुमत से विजयी बनाया है और कांग्रेस सहित उसके तमाम समर्थक दल की हालत पतली हो गई है। सारा कांग्रेसी कुनबा एक स्वर में मोदी के खिलाफ बोल रहे हैं। “शत्रु का शत्रु अपना मित्र है” इस कहावत की तर्ज अपर जो भी मोदी का विरोध कर रहा है वो कांग्रेस का मित्र बन गया। सामान्य जनता को भ्रमित करने के लिए कांग्रेसी खेमा नित्य नए उपाय और कारण ढूंढ लेते हैं। पहले भूमि अधिग्रहण, मोदी की सूट-बूट, ललित मोदी का मुद्दा, फिर महंगी दाल को लेकर भारी हंगामा मचाया। अब इस खेमें ने रोहित वेमुला की आत्महत्या को लेकर मोदी सरकार को दलित विरोध बताने का षड्यंत्र चला है। यहां तक कि अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर भारतविरोधी नारे लगानेवालों को निर्दोष कहकर जनता को भ्रमित करने और मोदी का विरोध करने के लिए देशद्रोहियों और अलगाववादी ताकतों को भी इकठ्ठा करने का प्रपंच रच रहे हैं।

जनता देख रही है, अब सम्भल जाएं 

जनता देख रही है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का विवेकशक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही है। कभी भारत की स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन करनेवाली कांग्रेस आज देशद्रोही नारे लगानेवालों के समर्थन में कैसे खड़ी हो गई? जनता में कांग्रेसी खेमा के प्रति खूब गुस्सा है और वे अन्दर से पीड़ित हैं। जनता ने देश है कि दिल्ली में देशद्रोही नारे लगानेवालों के खिलाफ लगभग 5 लाख भारत के सेवानिवृत्त सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए 21 फरवरी को राजघाट से संसद मार्ग तक “एकता रैली” निकाली थी जिसमें राहुल गांधी समेत कांग्रेसी कुनबा का कोई सदस्य शामिल नहीं हुआ, न ही आम आदमी पार्टी ने भाग लिया। वहीं 23 फरवरी को रोहित वेमुला की आत्महत्या की आड़ में जेएनयू के देशविरोधी नारे लगनेवाले छात्रों के समर्थन में निकाली गई रैली में कांग्रेस पार्टी की ओर से राहुल गांधी और उसके समर्थक दल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), जनता दल युनाइटेड (जद-यू), बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी (आआपा) के नेता शामिल हुए। इससे स्पष्ट सन्देश जा रहा है कि कांग्रेसी कुनबा किस दिशा में जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि कहीं मोदी विद्वेष की चिंगारी ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ कारण न बन जाए!

– लखेश्वर चंद्रवंशी ‘लखेश’