में प्रकाशित किया गया था कवितायेँ

तुम्हारी ये नजरें…

करती शरारत तुम्हारी ये नजरें,
करती तुम्हारी इबादत,…….ये नजरें !
नजर का ये आलम गजब ढा रहा है,
नजर का नशा हर तरफ छा रहा है ||
 
नजर को सम्भालूं मैं कैसे नजर से ?
नजर का ये आलम बना है नजर से |
नज़रों की बातें नजर ही तो जानें,
इजहारे मुहब्बत है होती नजर से |
 
नज़रों के हालात जानें नजर से,
होती बयां दिल की बातें नजर से |
तेरी नजर से नजर ने ये जाना,
गुजरा न होगा बिन तेरे नजर के || 
                                             – लखेश्वर  चंद्रवंशी “लखेश”