(एक व्यक्ति समाज के रुप में मंच पर लेटा है, दूसरा हाथों में किताब लेकर टहल रहा है; तभी सूत्रधार कहता है)
सूत्रधार : देखिए भाईयों, जरा गौर से देखिए, यह कौन -सो रहा है ?
और यह कौन है ? (रुककर)
यह है हमारे समाज का समाज सेवक और क्या कर रहा है यह ? (रुककर)
यह स्वामी विवेकानन्द की पुस्तक पढ़ रहा है और क्या कर रहा है ?
यह स्वामी विवेकानन्द / भारतमाता की तस्वीर निहार रहा है
परंतु सदियों से सोये हुए इस समाज पर क्या इसकी नजर पड़ेगी ? क्या यह इसकी ओर ध्यान देगा ?
(तभी समाज सेवक का पैर समाज के पैर से टकराता है और वह गिर जाता है तथा समाजकी ओर देखने लगता है)
सूत्रधार : देख रहा है…गौर से देख रहा है। हमारे समाज सेवक की नजर हमारे समाज की ओर है।
अब क्या करेगा यह ? (समाज सेवक समाज की छाती पर कान टिकाते हुए)
यह समाज की धड़कने सून रहा है। क्या धड़कने चल रही है ? (समाज सेवक ‘हाँ’ में ‘सिर’ हिलाता है।)
हाँ, धड़कने भी चल रही है !
(खुश होकर) यानि हमारा समाज जिन्दा है। अब क्या कर रहा है यह ?
(समाज के नाक के पास अपनी दो ऊँगली ले जाते हुए)
यह समाज की सांसे गिन रहा है ! क्या सांसे चल रही है ?
(समाज सेवक ‘हाँ’ कहने के लिए सिर हिलाता है)
हाँ ! सांसे भी चल रही है !
अब क्या करेगा यह ?
(समाज सेवक इस बार समाज का नाड़ी परिक्षण करने के लिए हाथ पकड़ता है)
यह समाज की नब्ज टटोल रहा है।
क्या नब्ज चल रही है ? (समाज सेवक ‘हाँ’ का संकेत करता है)
हाँ ! नब्ज भी चल रही है।
(1) (इतने में समाज झटके से अपना वही हाथ खड़ा कर देता है जिसे समाज सेवक ने छुआ था।)
लेकिन यह क्या ? नब्ज टटोलना तो समाजसेवक के लिए एक समस्या बन गई है। अब क्या करेगा यह ?
(समाजसेवक पूरी शक्ति लगाकर समाज की समस्या को सुलझाने का प्रयास करता है।)
समाज की समस्या से जूझता हुआ एक अकेला समाज सेवक !
(2) (एक हाथ नीचे करता है तो दूसरा हाथ ऊपर हो जाता है।)
पर यह क्या ? एक समस्या सूलझायी तो दूसरी खड़ी हो गई। अब क्या करेगा यह ?
(समाज सेवक समस्या सुलझाने में लगा रहता है।)
समाज की समस्या को सुलझाता एक अकेला समाज सेवक !
(3) (दुसरा हाथ नीचे करने पर पुन: पहला हाथ खड़ा हो जाता है।)
यह क्या ? पहली समस्या सुलझायी तो दूसरी खड़ी हो गई ! दूसरी समस्या सुलझायी तो पुन: पहली खड़ी हो गई । सचमुच हमारा समाज समस्याओं से भरा पड़ा है।
(समाजसेवक कुछ कह रहा है) कहीं भ्रष्टाचार, कहीं दूराचार, दहेज प्रथा, अशिक्षा और चारित्रिक पतन, न जाने कितनी समस्या है इस समाज में । परंतु हमारा समाजसेवक कभी हारने वाला नहीं है । वह जब तक प्राण है समाज की चुनौतियों का प्रत्युत्तर देता ही रहेगा ।
(समाजसेवक समाज के एक हाथ को एक हाथ से पकड़कर रखता है तथा दूसरे हाथ को पूरी ताकत से नीचे करता है।)
पुन: समाज की समस्या को सुलझाता हमारा समाजसेवक !
(4) (तभी समाज का पैर उठता है, समाज का पैर लगने से समाजसेवक आगे की ओर गिर जाता है।)
यह क्या एक और नयी समस्या ! अब क्या होगा इस समाज का !
(एक हाथ से एक पैर को पकड़कर दूसरे पैर को जमीन से लगाता है। तो दोनों हाथ ऊपर उठ जाते हैं।)
बड़ी मेहनत और लगन से समाज की चुनौतियों का सामना करता हमारा एकसमाजसेवक !
(दोनों हाथ खड़ी होने पर समाज सेवक को आश्चर्य होता है। वह कुछ देर चिंतन करता है, अचानक उसे एक युक्ति सुझती है)
आइडिया (समाज सेवक चुटकी बजाता है)
हमारे समाजसेवक को एक युक्ति सुझी है ।
(वह समाज के दोनों घुटनों पर बैठ जाता है और दोनों हाथों से पूरी शक्ति लगाकर समाजके हाथों को जमीन से लगाकर समाज से लिपट जाता है।)
सूत्रधार – समाज की समस्या को सुलझाने के लिए उससे दूर रहकर काम नहीं चलेगा। उसके साथ (ठीक इसी प्रकार से) तन, मन, धन से लिपटना होगा।
तब जाकर हमारे समाज की समस्या सुलझेगी।
(समाज सेवक बड़े संतोष भाव से उठकर खड़ा होता है पर सोचता है कि इसे कैसे जगाया जाए ?)
समस्याएँ तो सुलझ गयीं। परंतु गौर से देखिए, क्या हमारा ये समाज जागा है। नहीं जागा है। इसे जगाने के लिए पहले इसे उठाना होगा । परंतु सदियों से सोये हुए इतना विशालसमाज को क्या हमारा समाजसेवक उठा पायेगा ? देखते हैं….
(पूरी शक्ति लगाकर समाज को उठाने का प्रयत्न करता है पर सफल नहीं हो पाता है)
निश्चय ही हमारे विशाल और महान समाज को उठाना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए अपनी क्षमताओं को विकसित करना होगा। हमें कमर कसनी होगी। बल अर्जित करना होगा। तभी हम समाज को उठाने में सक्षम हो पायेंगे।
(पुन: शक्ति लगाकर समाज को उठाने का प्रयत्न करता है, परंतु असफल हो जाता है।)
इतने बड़े विशाल समाज को उठाना है तो एक व्यक्ति से काम नहीं चलेगा। इसके लिए हमें मिलकर प्रयास करना होगा । इसलिए आप, आप आईये। आईये, अवश्य आईये।
(दर्शकों में से सामने के कुछ व्यक्तियों को मंच पर सूत्रधार बुलाता हैं।) (इस दौरान समाज की आँखें बंद रहती हैं।)
समाजसेवक बाजु में समाज को देखते हुए खड़ा रहता है। देखिए, हम सब के प्रयास से हमारा समाज उठ खड़ा हुआ । परंतु जरा गौर से देखिए क्या यह जागा है? (रुककर…)
नहीं जागा है। इसे जगाना होगा। इसके लिए हम सभी को एक स्वर में आवाज लगानी होगी।
मैं कहूँगा – उठो, उठो, उठो भाई ! यहाँ उपस्थित आप सभी कहेंगे जागो, जागो, जागो भाई !
मैं कहूँगा- जागो, जागो, जागो भाई !
और आप सभी कहेंगे उठो, उठो, उठो भाई !
मेरी आवाज के साथ आवाज मिलाकर कहिये-
उठो, उठो, उठो भाई..
दर्शक – जागो, जागो, जागो भाई
जागो, जागो, जागो भाई।
दर्शक – उठो, उठो, उठो भाई।
(दो तीन बार नारे लगाने पर समाज आँखें खोलता है।)
सूत्रधार – हम सबके प्रयास से हमारा समाज जाग गया। परंतु आप को पता है, यह समाजकौन है ? यह समाज मैं हूँ, आप हैं, आप हैं, आप हैं, आप भी हैं। हम सबको मिलाकर ही इससमाज का निर्माण हुआ है। इसलिए हम अच्छे बनेंगे तो हमारा समाज अच्छा बनेगा । यदिसमाज में परिवर्तन लाना है तो हमें खुद में परिवर्तन लाना होगा। समाज को बनाना है तो खुद को बनाना होगा। हमें इसके लिए स्वामी विवेकानन्द जी के शक्तिशाली एवं प्रेरक विचारों का अध्ययन करना होगा और अपने आचरण में उन विचारों को प्रगट करना होगा । तभी हमारासमाज आदर्श स्वरूप को धारण कर पायेगा और आदर्श समाज की रचना से ही हमारे महान राष्ट्र भारत का पुनरुत्थान होगा।
वन्दे मातरम्
– लखेश्वर चंद्रवन्शी “लखेश”